किताबें-१
पिछले दिनों कई किताबें पढ़ी, उनका जिक्र करूंगा इस लेख में. इस श्रंखला को आगे जारी रखने का प्रयास करूंगा.
हरिवंशराय बच्चन जी की आत्मकथा ४ भागों (क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969), नीड़ का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1977), दशद्वार से सोपान तक (1985)) में है और उसके पहले ३ भाग मैं २ साल पहले लॉकडाउन में पढ़ चुका था. क्या भूलूँ क्या याद करूँ में अपने बचपन से लेकर जवानी के वर्षों के बारे में लिखते हैं. नीड़ का निर्माण फिर में अपनी पहली पत्नी के निधन के बाद कैसे फिर से जीवन जीने का प्रयास करते हैं, उसके बारे में लिखा है. बसेरे से दूर में वे अपने इंग्लैंड प्रवास का जिक्र करते हैं, जहाँ उन्होंने कैंब्रिज से पीएचडी की थी.
मुझे बेहद पसंद आयी थीं. बच्चन जी की याददाश्त कमाल की है. ६२ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी आत्मकथा का पहला भाग प्रकाशित करवाया. लेकिन अगर आप पढ़ेंगे तो उन्होंने अपने बचपन की बातों के बारे में बहुत विस्तार से लिखा है और बहुत छोटी छोटी बातों के बारे में भी, ऐसे बातें जो आपको २ साल न याद रहें. मुझे आत्मकथा पढ़ने में मज़ा आता है.
मेरे पास किंडल अनलिमिटेड का सब्सक्रिप्शन है, जो की पढ़ने वालो के लिए बहुत कारगर चीज़ है. बहुत सारी किताबें हैं जो किंडल अनलिमिटेड सब्क्रिप्शन से आप ले सकते हैं, हिंदी की तो बेहद शानदार किताबें मौज़ूद हैं. आप एक बार में १० किताबें उधार ले सकते हैं और पढ़ने के बाद लौटा दीजिये. महीने का १६९ रुपये शुल्क है. आप अगर पढ़ने के शौक़ीन हैं तो किंडल का सब्सक्रिप्शन ले लीजिये, पछतायेंगे नहीं. तो पहले तीन भाग बच्चन जी की आत्मकथा के किंडल पे थे और मैंने पढ़ डाले थे कोई १५-२० दिनों में ही. लेकिन चौथा भाग नहीं था, अभी हाल ही में मुझे वो चौथा भाग दिखाई दिया और मैंने बिना किसी देर के उसको डाउनलोड किया. फिलहाल पढ़ रहा हूँ, पहले के तीन भागों जैसा ही है, विस्तृत और शानदार. बोरियत नहीं हुई मुझे अभी तक.
बच्चन जी की आत्मकथा की ख़ास बात है कि उन्होंने अपने आप को अच्छा दिखाने की कोशिश नहीं की. पैसे से उन्हें मोह है, किसे नहीं होता, लेकिन उसको उन्होंने छिपाया नहीं है. एक और बात जो मुझे थोड़ी आखरी वो है बच्चन जी का जातिमोह. जगजाहिर है की बच्चन जी कायस्थ हैं, और उन्होंने बहुत सारी जगह अपने कायस्थ होने की बात पे गर्व करते हुए लिखा है. मेरा मानना है की अगर आप इतने बड़े लेखक हैं, लेखक हैं तो विचारक हैं ही, आपने दुनिया देखी तो आपको इन सबसे थोड़ा ऊपर उठना चाहिए.
डॉ. धर्मवीर भर्ती का नाम सुना है आपने? नहीं सुना तो ये हमारा दुर्भाग्य है, हमारे देश के हिंदी के शानदार लेखकों में से एक रहे हैं. अभी पीछे मैंने उनकी “गुनाहों का देवता” पढ़ी. एक शानदार उपन्यास है. और जब आप ये जान जाते हैं की ये उपन्यास उनकी सिर्फ दूसरी रचना थी और वह भी सिर्फ २३ साल की उम्र में तब वह और भी शानदार लगती है. २३ साल की उम्र में इतनी शानदार कृति, बताती है कि कितनी प्रतिभा थी उनमे. और भी कई शानदार किताबें जैसे सूरज का सातवाँ घोड़ा लिखी उन्होंने, जो आगे पढ़ने का विचार है.
कम उम्र में जब कोई कुछ शानदार काम करता है तो मैं उसको और ज्यादा सराहता हूँ. बच्चन जी ने “मधुशाला” लिखी २८ कि उम्र में. राज कपूर ने २४ साल कि उम्र में अपना प्रोडक्शन हाउस खोल लिया था और २५ और २७ कि उम्र में “बरसात” और “आवारा” जैसी शानदार विश्वप्रसिद्ध फ़िल्में निर्देशित कर चुके थे.
“गुनाहों का देवता” आप आज पढ़ते हैं तो थोड़ी पिछड़ी हुई लगती है. पिछले कुछ सालो में महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात हुई है समाज में, और थोड़ा परिवर्तन भी आया है, इसी लिए ये किताब थोड़ी पिछड़ी लगती है कहीं कहीं, लेकिन आपको कोई भी कलाकृति चाहे वह किताब हो या फिल्म या फिर पेंटिंग, ये देखकर विश्लेषण करना चाहिए कि वह किस युग में रची गयी थी. १९४९ मतलब आज से ७३ साल पहले. देश बस आज़ाद ही हुआ था. उस समय हिंदुस्तान पूरी तरह से पुरुष प्रधान समाज था. ये किताब कहीं कहीं महिला अधिकारों की बात भी करती है जो अपने आप में सराहनीय है उस समय के हिसाब से.
इससे पहले मैंने अनिकेत केतकर की २ किताबें पढ़ी “टेल्स फ्रॉम द रोड”… दोनों ही किताबें इसी शीर्षक से लिखी गयी हैं, अंग्रेजी में हैं, यात्रा वृतांत हैं. यात्रा वृतांत मुझे हमेशा से आकर्षित करते हैं. दोनों ही किताबें मुझे अच्छी लगीं. अनिकेत पहले किसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते थे, २०१४ में नौकरी छोड़ दी. अब सिर्फ यात्रा करते हैं और लिखते हैं. यात्रा से ख़र्चों के लिए कुछ पार्ट टाइम काम करते हैं. पहली किताब उनकी पूर्वी एशिया के देशों की यात्रा के बारे में हैं. अनिकेत कम खर्चे पे यात्रा करते हैं, अक्सर होस्टल्स में रहते हैं और बस से यात्रा करते हैं, जिससे उनका बजट ना बिगड़े. दूसरी किताब में वो अपनी दक्षिण अमरीका यात्रा के बारे में लिखते हैं, जहाँ उन्होंने लगभग एक साल बिताया. ये किताब भी शानदार है, थोड़ी लम्बी है. मैं अनिकेत की इतने सारे लोगों से संवाद शुरू करने और उसको जारी रखने की काबिलियत का प्रशंशक हूँ. अनिकेत बड़ी आसानी से नए दोस्त बना लेते हैं, उनके साथ कमरा साझा करते हैं, यात्रायें साझा करते हैं. मुझे हमेशा ही ये थोड़ा कठिन लगता है. यात्राओं से दौरान आपको बहुत सारे खजाने मिलते हैं, अनिकेत को उसी खजाने से एक गर्लफ्रेंड मिली. अनिकेत की एक और किताब है जो उन्होंने भारत, नेपाल और श्रीलंका की यात्राओं पे लिखी है, उसको पढ़ने शुरू किया है.
आप लोग भी ज़रूर कुछ पढ़ते होंगे, कमेंट सेक्शन में बताइयेगा.